प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेला में बाबाओं की एक नई और दिलचस्प तस्वीर सामने आई है। इस मेले से जुड़े वीडियो और कहानियाँ सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। महाकुंभ में कई अजीबो-गरीब बाबाओं की मौजूदगी है, जो मेले के बाद फिर से गायब हो जाएंगे।
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एम टेक बाबा |
हाल ही में एक बाबा मिले थे जिन्होंने बॉम्बे आईआईटी से शिक्षा ली थी, जिसके बाद उनकी प्रसिद्धि बढ़ी और लोग उनकी ओर आकर्षित होने लगे। इसी क्रम में एक और अनोखा बाबा सामने आया है, जिन्होंने एमटेक किया हुआ है और वह एसीसी बिड़ला और कजारिया जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में काम कर चुके हैं।
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एमटेक बाबा
प्रयागराज के महाकुंभ में देश-विदेश से आए साधु-संतों के बीच अब एक नया नाम सामने आया है। इनका नाम है दिगंबर कृष्ण गिरी, जो एमटेक करने के बाद संत बन गए हैं। वे एक समय में 40 लाख रुपए का सालाना पैकेज कमाते थे और उनकी महीने की सैलरी तीन लाख रुपए से अधिक थी। लेकिन उन्होंने सांसारिक सुख-सुविधाओं को छोड़कर निरंजनी अखाड़े से जुड़कर नागा सन्यासी बनने का निर्णय लिया।
दिगंबर कृष्ण गिरी ने बताया कि जब वे अपने दोस्तों के साथ हरिद्वार यात्रा पर गए थे, तो उन्होंने वहां नागा साधुओं को देखा, और तभी से उनके मन में सन्यासियों के बारे में जानने की इच्छा जागृत हुई थी।
जीएम के पद पर थे
दिगंबर कृष्ण गिरी ने कर्नाटका विश्वविद्यालय से एमटेक किया था और वे कई प्रमुख कंपनियों में उच्च पदों पर कार्यरत रहे। उनकी महीने की सैलरी लगभग सवा तीन लाख रुपए थी। वे एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार से हैं। एसीसी बिड़ला और कजारिया जैसी कंपनियों में कार्य करने के बाद, 2010 में वे दिल्ली स्थित एक कंपनी में जीएम के पद पर थे, जहां उनके अधीन करीब 450 कर्मचारी काम करते थे।
संन्यास का मार्ग अपनाया
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एम टेक बाबा |
दिगंबर कृष्ण गिरी के अनुसार, उन्होंने अपने दोस्तों के साथ यात्रा के दौरान नागा संन्यासियों को देखा और तब से उनके मन में संन्यास के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा। सामाजिक और पारिवारिक मोह-माया को छोड़कर उन्होंने संन्यास का मार्ग अपनाया और नागा साधु बन गए।
प्रेरणा का स्रोत
दिगंबर कृष्ण गिरी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो भौतिक जीवन की आपाधापी में आत्मिक शांति को भूल चुके हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि जीवन का असली उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और ईश्वर की खोज है। दिगंबर कृष्ण गिरी ने अपने जीवन से यह सिद्ध कर दिया कि उच्च शिक्षा और आध्यात्मिकता में कोई विरोधाभास नहीं है। वे यह दिखाते हैं कि भौतिकता और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन बनाकर एक संतुष्ट और अर्थपूर्ण जीवन जिया जा सकता है। उनकी कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने जीवन में आध्यात्मिकता की तलाश कर रहे हैं।
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